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Friday, September 21

कैसे बनें कुशल वक्ता? क्या है इसका ‘कोड-5’

कैसे बनें कुशल वक्ता? क्या है इसका ‘कोड-5’


कैसे बनें कुशल वक्ता? क्या है इसका ‘कोड-5’
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बहुत लोगों के लिए भाषण देना एक बहुत मुश्किल काम है, स्टेज पर खड़े होते ही पसीना छूट जाता है। हालांकि ये भी सच है कि तीन-चार बार स्टेज से बोलने के बाद आपका ये डर खत्म हो जाता है या कम हो जाता है। वक्ता तो आप बन जाते हैं, लेकिन कुशल वक्ता होना आसान नहीं। कॉरपोरेट हो, पॉलिटिक्स हो, कॉलेज हो, सोसायटी हो या फिर और कोई भी फील्ड, कुशल वक्ताओं की पूछ हर जगह होती है। ऐसा होना मुश्किल जरूर हो लेकिन नामुमकिन नहीं, ड्राइविंग और स्विमिंग की तरह थोड़ी सी प्रेक्टिस और कुछ नियमों को लगातार फॉलो करने से आप अच्छे वक्ता बन सकते हैं, हां पर बिना क्रिएटिव माइंड के राह आसान नहीं। कुछ खास बातों का ध्यान एक अच्छा वक्ता हमेशा रखता है, लेकिन कैसे अपने आप में कुछ सुधार करके यह हासिल कर सकते हैं, आइए जानते हैं।
आपने मोदी जैसे किसी नेता या अमिताभ बच्चन जैसे अभिनेता को मंच पर आते वक्त देखा होगा कि कैसे वो मंच पर आते ही उत्साह और जोश से भर जाते हैं, उनका ये उत्साह खोखला नहीं होता, उनका ज्ञान और विषय पर पकड़ उनकी आंखों में चमक की असली वजह होती है। तो जाहिर है आपको जिस विषय पर बोलना है, उसकी पहले से तैयारी बहुत जरूरी है। घबराहट एक ऐसी चीज है जो सबको होती है चाहे वो कुशल खिलाड़ी हो या नौसिखिया, सो उसे अपने ऊपर हावी होने से बचा जाए उतना ही ठीक है। इससे बचने का एक ही तरीका है अभ्यास, क्योंकि तैराकी अगर सीखनी है तो पानी में उतरना ही होगा, किनारे पर बैठकर तैराकी के नुस्खे सीखने से कुछ नहीं होगा।
विषय का ज्ञान और उस पर पकड़ दो अलग-अलग बातें हैं, विषय का ज्ञान होना ही पर्याप्त नहीं है, आपकी उस पर पकड़ भी होनी चाहिए। जितना आप उसे समझेंगे, उतना ही आत्मविश्वास से आप समझा पाएंगे, बोल पाएंगे। सबसे पहले श्रोताओं से कनेक्ट होना बहुत जरूरी है, उसके लिए प्रभावी वाक्यों, शब्दों का चयन जरूरी है, उसके लिए अच्छे से तैयारी करें, शुरूआत में ही श्रोताओं से अगर आप कनेक्ट हो जाते हैं, तो वो आपकी हर बात को सीरियसली लेते हैं। कभी-कभी आपको मौके पर ही श्रोताओं से कनेक्ट करने की कई बातें मिल जाती हैं, जैसे मोदी की एक हालिया रैली में हुआ, बल्लियों पर चढ़े युवकों को देखते ही मोदी ने कहा, पहले आप उतरिए तब मैं बोलना शुरू करूंगा। सारी जनता को लगा कि मोदी ये क्या कह रहे हैं, क्या कर रहे हैं और वो जुड़ गए। उनसे कनेक्ट करने के लिए कभी-कभी वो उनसे पर्सनल सवाल भी करते हैं कि क्या आपने ऐसा कभी किया है?  या फिर आपमें से कितने लोग हैं जिनके घर में कोई सरकारी कर्मचारी है? हाथ उठाइए। इन सब बातों से जहां वक्ता का आत्मविश्वास देखने को मिलता है, वहीं कभी-कभी वो आते ही बताना शुरू कर देते हैं कि जब मैं यहां आ रहा था तो किसी ने मुझसे इस ईवेंट के बारे में ऐसा कहा।
वक्ताओं के लिए स्पीकिंग की ए,बी, सी, डी, ई जरूर याद रखनी चाहिए। ए फॉर एक्शन और एरिया यानी आप जिस सब्जेक्ट एरिया के बारे में आप बोलने आए हैं, आपके पास एक्शन प्लान है कि नहीं, जानकारी है कि नहीं, उस एरिया की समस्या और उसका समाधान है कि नहीं। दूसरा बी यानी बोल्डनेस, ये आपके कॉन्फीडेंस का पैमाना है, मंच पर बोलते वक्त आत्मविश्वास से लबालब होने चाहिए। तीसरा सी यानी क्रिएटिव, क्रिएटिवटी बहुत जरूरी है, कुछ जुमले, कुछ शेर, कुछ कविताएं, कुछ जोक, कुछ प्रेरणा देने वाले वाकए आपके दिमाग की मेमोरी में हमेशा होने चाहिए, और आपकी क्रिएटिवटी इसमें है कि आप मौके की नजाकत को देख कर फौरन मौके पर चौका मार सकें।
चौथा है डी यानी डाटा, आपको अपने विषय के कुछ इंटरेस्टिंग डाटा जरूर तैयार करके बोलने जाना चाहिए, डाटा या आंकड़े देने से आपकी बातों में वजन आता है, जब मोदी बिहार जाते हैं तो बिहार सरकार के क्राइम का वही आंकड़ा लेकर जाते हैं, जो नीतीश सरकार को डाउन कर सके। वहीं नीतीश आते हैं तो एक दूसरे आंकड़े के साथ जो मोदी की बात को हलकी कर सके, जाहिर है डाटा अहम रोल प्ले करता है और ये हर फील्ड में करता है, टीवी के एंकर से लेकर कॉरपोरेट कंपनियों में होने वाली मीटिंग तक में। पांचवां शब्द है ई, यानी एनर्जी, जब आप बोल रहे हों तो आपके आसपास मंच पर, श्रोताओं के बीच, आयोजकों के बीच एनर्जी लेवल हाई होना चाहिए। अच्छे वक्ता वो होते हैं जो मंच पर आते ही सबसे पहले पूरे ईवेंट की एनर्जी बढ़ा देते हैं, स्लोगंस, गीत या चुटीले वाक्यों से ऐसा किया जा सकता है। हर फील्ड के अच्छे वक्ताओं के वीडियोज यूट्यूब में देखकर आसानी से इसे किया जा सकता है।
जब आप मंच पर हों तो यह विश्वास होना जरूरी है कि ये आपका मंच है, आपकी सत्ता है और इस पर आपकी पूरी पकड़ जरूरी है क्योंकि आप अपने अंदर यह महसूस नहीं करेंगे तो आपकी अपनी बात पर भी पकड़ नहीं रहेगी। नम्र रहिए लेकिन दब्बू नहीं। आंकड़ों और बातों में सच्चाई होनी चाहिए, और विचारों को पूरी मजबूती से रखिए।
एक और बड़ी बात है लय और शैली। वक्ता यदि अपने ज्ञान का प्रदर्शन एक सुर में करता रहे तो शायद आधे से ज्यादा श्रोता सो जाएंगे। इसलिए माहौल बोरिंग ना हो, इसलिए इससे बचना जरूरी है। अपनी बातों में लय, रस और एक दिलचस्प शैली डेवलप करना बहुत जरूरी है। बस अपनी बात को फील करिए, और उसी भावनात्मक अंदाज में पब्लिक के सामने रख दीजिए, देखिएगा श्रोता कैसे बहे चलेगा आपके साथ।
बोलने से पहले ये भी ध्यान में रखना जरूरी है कि सुनने वाले कौन हैं, मेजोरिटी किसकी है। जाहिए है बच्चे सामने बैठे हैं, तो आपको उनके मूड को ध्यान में रखना होगा, महिलाएं हैं तो उनसे जुड़ी बातों को अपने शब्दों में पिरोना होगा। कॉरपोरेट्स हैं तो उनकी डेली लाइफ से जुड़ी बातों, किस्सों को लेना होगा, युवा किसी और तरह के मूड में रहता है और गांव देहात के लोग अलग तरह की बातें सुनना चाहते हैं।
और सबसे बड़ी बात है प्रैक्टिस, जब मौका मिले, जहां मौका मिले, स्कूल की स्टेज पर, मोहल्ले की मीटिंग में, घर के फंक्शन में जिस मुद्दे पर मौका मिले, कुछ ना कुछ जरूर बोलिए। धीरे-धीरे आपकी झिझक और डर मिटने लगेगा। स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि आप जिससे सबसे ज्यादा डरते हैं, उसी पर सबसे पहले अटैक करिए, यानी बोलना शुरू करिए। वैसे आजकल तो शुरुआत मोबाइल कैमरे के साथ भी की जा सकती है, तैयारी करिए, अपना मोबाइल ठीक ऊंचाई पर सेट करिए, वीडियो कैमरा ऑन कर दीजिए और कर दीजिए शुरुआत अच्छा वक्ता बनने की। फिर तैयारी करिए, फिर बोलिए, फिर खुद तुलना करिए या खास दोस्त से करवाइए कि पहले से बेहतर हुआ कि नहीं। खुद से ही कम्पटीशन करिए, सच मानिए धीरे-धीरे आप जानेंगे कि अरे, ये तो बहुत ही आसान था।

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